तीस्ता सीतलवाड़ की समाजसेवा के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ!

2002 के गुजरात दंगों के बाद से देश की राजनीति में आए बदलाव को आपने अच्छी तरह देखा होगा और महसूस भी किया होगा इन दंगों के साथ एक और नाम बार बार लाइमलाइट में आता है और वो नाम है तीस्ता सीतलवाड़ का। तीस्ता सीतलवाड़ पिछले 14 वर्षों से कथित तौर पर गुजरात के मुस्लिम दंगा पीड़ितों के हक़ की लड़ाई लड़ रही हैं। लेकिन चिंता और दुख की बात ये है कि इस लड़ाई के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ है।

आपने अक्सर राजनीति की दुनिया में एक वाक्य ज़रूर सुना होगा जिसमें कहा जाता है कि "इसके पीछे विदेशी ताकतों का हाथ है"। आज ये बात सामने आई है कि तीस्ता सीतलवाड़ की समाजसेवा के पीछे भी विदेशी ताकतों का हाथ है। अगर समाजसेवा में विदेशी पैसे और देशविरोधी एजेंडे की मिलावट हो जाए तो वो समाजसेवा नहीं रहती। इसलिए हम इस पूरे मामले को समाजसेवा घोटाला कह रहे हैं।
सबसे पहले आपको समझाते हैं कि तीस्ता सीतलवाड़ की समाजसेवा में विदेशी पैसे और एजेंडे की मिलावट का आरोप क्यों लग रहा है?
आरोप है कि दंगा पीड़ितों की लड़ाई लड़ने के लिए तीस्ता सीतलवाड़ और उनके NGO को विदेश से गैरकानूनी तरीके से काफी पैसा मिला, इसकी जांच भी चल रही है। लेकिन आज मुद्दा तीस्ता सीतलवाड़ के NGO को मिला पैसा नहीं है, बल्कि आज मुद्दा है, तीस्ता के NGO 'सबरंग ट्रस्ट' की वो रिपोर्ट, जिससे ये पता चलता है कि हमारे देश के समाजसेवक किस तरह दुनियाभर में भारत की बदनामी का काम ठेके पर लेते हैं। आज हम तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति जावेद आनंद पर लगे देश विरोधी एजेंडा चलाने के आरोपों का DNA टेस्ट करेंगे और ये समझने की कोशिश करेंगे कि क्या तीस्ता सीतलवाड़ विदेशी ताकतों के 'हाथ' का खिलौना बन गईं? ज़ी न्यूज की इन्वेस्टिगेटिंग टीम को गुजरात सरकार की एक रिपोर्ट मिली है। जिसमें तीस्ता सीतलवाड़ और उनके NGO के कामकाज के तरीके के बारे में कई गंभीर खुलासे हुए हैं, इस रिपोर्ट में एक पत्र का ज़िक्र है।
-27 फरवरी 2015 को अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच ने गुजरात के गृह मंत्रालय के एडिशनल चीफ सेकरेट्री को एक पत्र लिखा था।
-ये पत्र अमेरिकी एनजीओ फोर्ड फाउंडेशन द्वारा तीस्ता सीतलवाड़ के NGO सबरंग ट्रस्ट को दी गई ग्रांट यानी आर्थिक मदद के संबंध में लिखा गया था।
-सबरंग ट्रस्ट ने फोर्ड फाउंडेशन को 19 दिसंबर 2014 को ग्रांट के लिए प्रस्ताव दिया था और लिखा था कि वो इस ग्रांट की मदद से भारत में भेदभाव का सामना करने वाले मुसलमानों की स्थिति को सुधारेंगे।
-इसके बाद सबरंग ट्रस्ट को फोर्ड फाउंडेशन से ग्रांट मिली।
-सबरंग ट्रस्ट ने फोर्ड फाउंडेशन से मिले पैसों के इस्तेमाल के बाद फाउंडेशन को अपनी वित्तीय रिपोर्ट्स दी और इसके आधार पर तीस्ता सीतलवाड़ के NGO सबरंग ट्रस्ट के देशविरोधी एजेंडे के बारे में पता चला है।
-फोर्ड फाउंडेशन को दी गई रिपोर्ट में सबरंग ट्रस्ट ने लिखा कि उन्होंने United kingdom में एक अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया जिसका मूल विषय था-भारत में मुसलमानों की दुर्दशा।
-यही नहीं भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति के विषय पर कराची, अमेरिका और क़तर के दोहा में भी कुछ वर्कशॉप और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन किया गया। यानी फोर्ड फाउंडेश से मिले पैसे से भारत के खिलाफ विदेशों में दुष्प्रचार किया जा रहा था।
-यही नहीं इस रिपोर्ट में ये भी लिखा है कि सबरंग ट्रस्ट ने इस पैसे से कथित हिंदू आतंकियों की जांच भी की। यानी देश की जांच एजेंसियां तो अपना काम कर रही थीं। लेकिन तीस्ता सीतलवाड़ का NGO सबरंग ट्रस्ट भी विदेशी पैसे से कथित हिंदू आतंकवाद के विषय पर अपनी अलग जांच कर रहा था।
-इस रिपोर्ट में हिंदू टेरर ग्रुप वाक्य का इस्तेमाल बार-बार किया गया था।
फोर्ड फाउंडेशन को दी गई रिपोर्ट में राइज ऑफ सैफरन टेरर विषय पर ये लिखा गया कि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में कई आतंकी घटनाएं हुई हैं जिनमें नेवी और आर्मी के कई रिटायर्ड और मौजूदा अफसर भी शामिल थे। यानी अपना एजेंडा चमकाने और भारत को बदनाम करने के लिए सेना पर भी सवाल उठाए गए।
रिपोर्ट में ये भी लिखा गया कि जांच में आरएसएस और बजरंग दल के कई कार्यकर्ता आतंकी गतिविधियों में शामिल पाए गये। और भारत की मिलिट्री अकेडमी में बम बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है। इस रिपोर्ट में 2008 के मालेगांव ब्लास्ट में साधु और साध्वियों के शामिल होने का भी जिक्र है। हालांकि ये बात अब साफ हो गई है कि मालेगांव धमाकों में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को फंसाया गया था।
फोर्ड फाउंडेशन को दी गई इस रिपोर्ट में 2009 के लोकसभा चुनावों का भी जिक्र है और साफ-साफ लिखा गया है कि भारत के लोगों ने बांटने की राजनीति करने वालों को नकारा है, और एक बार फिर कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की जीत हुई है। यानी 2009 में कांग्रेस की जीत से तीस्ता सीतलवाड़ बहुत खुश थीं।
रिपोर्ट में तीस्ता सीतलवाड़ पर यूपीए सरकार द्वारा की गई मेहरबानियों का भी ज़िक्र है। 2009 में UPA सरकार ने सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन यानी सीएबीई में तीस्ता सीतलवाड़ को नियुक्त किया था। जिसके बाद तीस्ता सीतलवाड़ ने वाजपेयी सरकार की शिक्षा नीति को निरस्त करने में अहम भूमिका निभाई थी। यही नहीं नेशनल एडवाइजरी बोर्ड यानी एनएसी में तीस्ता सीतलवाड़ को सदस्य बनाया गया था, आपको बता दें कि एनएसी की अध्यक्ष सोनिया गांधी थीं।
इस रिपोर्ट में सबरंग ट्रस्ट ने ये भी स्वीकारा है कि गुजरात दंगों के बाद 2002 से ही अमेरिकी दूतावास भी लगातार उनके संपर्क में था। ताकि अमेरिका को गुजरात दंगों की न्यायिक प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी मिल सके। यानी तीस्ता सीतलवाड़ का NGO सबरंग ट्रस्ट अमेरिकी दूतावास के लिए मुखबिर की भूमिका भी निभा रहा था।
अपनी रिपोर्ट में सबरंग ट्रस्ट ने गुजरात में आतंकियों के एनकाउंटर को मुसलमानों की हत्या बताया था। जबकि अब ये साफ हो चुका है कि इशरत जहां आतंकी ही थी। यानी तीस्ता सीतलवाड़ का NGO देश को बदनाम करने की पूरी साज़िश रच रहा था। लेकिन अब सवाल ये है कि अगर तीस्ता सीतलवाड़ समाजसेवा के नाम पर देश को बदनाम करने के काम में जुटी थी तो UPA सरकार को इसका पता क्यों नहीं चला? गौर करने वाली बात ये भी है कि तीस्ता सीतलवाड़ को अपनी समाजसेवा के लिए 2007 में पद्म श्री भी दिया गया था और उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी।
सवाल ये भी है कि अगर तीस्ता सीतलवाड़ ने विदेशी पैसे और एजेंडे से फलने-फूलने वाली समाजसेवा की है और भारत के खिलाफ एजेंडा चलाया है तो फिर उन्हें पद्म श्री क्यों दिया गया? उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी और प्रधानमंत्री थे-मनमोहन सिंह। पद्म श्री देकर एक तरह से तीस्ता सीतलवाड़ को अपनी गतिविधियों का ईनाम दिया गया।
यहां आपको ये भी याद दिला दें कि इससे पहले भी कई बार विदेशी NGOs ने भारत की छवि खराब करने का काम किया है।
ग्रीनपीस नामक NGO पर भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लग चुका है। ग्रीनपीस इंडिया पर भारत में कोयले के इस्तेमाल और उत्पादन की नीतियों के खिलाफ काम करने का आरोप है। सरकार ग्रीनपीस का लाइसेंस भी रद्द कर चुकी है। गृहमंत्रालय के गोपनीय दस्तावेजों से मिली जानकारी के मुताबिक 7 वर्षों में ग्रीनपीस इंडिया को 45 करोड़ रुपये विदेशी चंदे के रूप में मिले। और इन पैसों का इस्तेमाल पूरे भारत के कोयला प्लांट्स में धरना प्रदर्शन को बढ़ावा देने के लिए किया गया।
इसके अलावा तमिलनाडु के कुडनकुलम में बनने वाले न्यूक्लियर पावर प्रोजेक्ट के खिलाफ कई विदेशी NGOs ने काम किया। भारत में ये न्यूक्लियर प्लांट रूस की मदद से बन रहा था। इस प्लांट के विरोध में नेशनल अलायंस ऑफ एंटी न्यूक्लियर मूवमेंट्स और पीपुल्स मूवमेंट एगेंस्ट न्यूक्लियर एनर्जी नामक NGOs ने काम किया था।
-zee news

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